प्राचीन स्वदेशी चिकित्सा

श्रीलंका की पारंपरिक चिकित्सा (IMSL) "हेला वेदकमा" सदियों से चली आ रही एक अनोखी धरोहर है, जो प्राचीन चिकित्सा साहित्य के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रही है। वास्तव में, श्रीलंका गर्व से यह दावा करता है कि वह विश्व का पहला देश है जिसने संगठित रूप से अस्पतालों की स्थापना की। श्रीलंका के कुछ प्राचीन नगर – पोलोन्नारुवा, मेडिरिगिरिया, अनुराधापुर और मिहिंतले – आज भी उन खंडहरों को संजोए हुए हैं जिन्हें बहुत से लोग दुनिया के पहले अस्पताल मानते हैं।

आज भी श्रीलंका में पारंपरिक चिकित्सा की कई शाखाएँ मौजूद हैं, जैसे हड्डी जोड़ने की चिकित्सा (Kedumbidum Wedakama), साँप के काटने का उपचार (Sarpavisha Wedakama), नेत्र-चिकित्सा (Es Wedakama), मनोरोग (Unmada Wedakama), और फोड़े, घाव तथा कैंसर का उपचार (Gedi-Wana-Pilika Wedakama) आदि। इन्हें अब भी प्रभावी और समाज द्वारा स्वीकार्य माना जाता है। सरार्थ संग्रहाय, वातिका प्रकरणाय, देशीय चिकित्सा संग्रहाय, भैषज्य मंजूषा, औषध संग्रह तथा विभिन्न ताड़पत्र पांडुलिपियाँ श्रीलंका की पारंपरिक चिकित्सा से जुड़ी महत्वपूर्ण लिखित धरोहरें हैं।

इसके अतिरिक्त, कई परिवारों में पीढ़ियों से चली आ रही बहुमूल्य औषधियाँ, उपचार पद्धतियाँ, मान्यताएँ और तकनीकें आज भी प्रचलित हैं, जो अब तक लिखित रूप में उपलब्ध नहीं हैं। वर्तमान में, श्रीलंका में 8,000 से अधिक पारंपरिक चिकित्सक आयुर्वेद मेडिकल काउंसिल में पंजीकृत हैं। इनमें से कई प्रांतीय आयुर्वेदिक अस्पतालों में कार्यरत हैं। कुछ चिकित्सक हाल के वर्षों में कैंसर और अज्ञात कारणों से होने वाली पुरानी गुर्दे की बीमारियों (CKDu) जैसी समस्याओं का सफलतापूर्वक उपचार भी कर रहे हैं। यह उपचार आयुर्वेद शिक्षण अस्पतालों (3), आयुर्वेद अनुसंधान अस्पतालों (4), प्रांतीय आयुर्वेद अस्पतालों (56) और आयुर्वेद केंद्रीय औषधालयों (208) में किए जाते हैं।


हेला वेदकमा का इतिहास

श्रीलंका ने अपना विशिष्ट आयुर्वेदिक तंत्र विकसित किया, जो 3000 वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही विधियों और नुस्खों पर आधारित है। प्राचीन काल के राजा, जो स्वयं भी श्रेष्ठ चिकित्सक थे, इस परंपरा को संरक्षित और दीर्घायु बनाने में सहायक बने। इनमें से सबसे प्रभावशाली चिकित्सक राजा बुद्धदासा (398 ईस्वी) थे, जिन्होंने यह परंपरा स्थापित की कि रोगियों का उपचार करने या औषधियाँ बनाने से पहले अनुमति लेना अनिवार्य था।

प्राचीन शिलालेख बताते हैं कि संगठित चिकित्सा सेवाएँ सदियों से देश में मौजूद थीं। वास्तव में, श्रीलंका स्वयं को विश्व का पहला ऐसा देश मानता है जिसने समर्पित अस्पताल स्थापित किए, जहाँ पशुओं की शल्यचिकित्सा भी संभव थी। मिहिंतले पर्वत पर आज भी उन अवशेषों को देखा जा सकता है जिन्हें कई लोग दुनिया का पहला अस्पताल मानते हैं। ये प्राचीन अस्पताल स्थल अब पर्यटकों को आकर्षित करते हैं और उस समय की उपचार और देखभाल की परंपरा के प्रतीक बन गए हैं।

आयुर्वेदिक चिकित्सकों को ऐतिहासिक रूप से राजाओं का संरक्षण प्राप्त था, जिससे उन्हें समाज में प्रतिष्ठा मिली। इसी विरासत से एक प्रसिद्ध श्रीलंकाई कहावत प्रचलित हुई: "यदि तुम राजा नहीं बन सकते, तो चिकित्सक बनो।" यूरोपीय उपनिवेशवाद और आधुनिक दवाओं की लोकप्रियता के साथ श्रीलंका की पारंपरिक चिकित्सा धीरे-धीरे लुप्त हो गई। किन्तु हाल के वर्षों में अधिकाधिक पर्यटक लगातार बनी रहने वाली पुरानी बीमारियों के वैकल्पिक उपचार के लिए श्रीलंका की पारंपरिक चिकित्सा की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसके अलावा, बौद्ध धर्म और अन्य सांस्कृतिक तत्वों के साथ आयुर्वेद आज भी श्रीलंका की राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा है और आधुनिक लोकतांत्रिक राजनीति तथा सार्वजनिक विमर्श को प्रभावित करता है।


डाउनलोड्स
श्रीलंका में पारंपरिक चिकित्सा अनुसंधान की समीक्षा 2015–2019